Wednesday 24 December 2014

रिश्ते


प्रेम में ख़त्म होते जाने वाले भावों को समर्पित........

रिश्ते भले बने हो भाव से ,
पर होते मानो ख्बाब से ...
जो भाव ख़त्म होने लग जाये
टूट जाएं रिश्ते झनाक से...

शुरू शुरू में प्रीति भले हो ,
प्रेम प्यार की रीति भले हो ...
समय गुजरता ज्यूँ जाता हे,
भाव उतरता ही जाता हे....

कल तक जो रिश्ते थे प्रभात,
समय संग हुए संध्याकाल से...
जो भाव ख़त्म होने लग जाये,
टूट जाये रिश्ते झनाक से ....

शेष्  सुहाना कुछ रहा नहीं हे,
प्रेम बेगाना लगता अब....
प्रिय-हमदर्दी में भी भाव नहीं हे ,
सुर बिखरे कोई राग नहीं हे....

कल तक जो थी प्यार की बातें ,
आज बने सब जी जंजाल से....
जो भाव खत्म होने लग जाये,
टूट जाये रिश्ते झनाक से....

जब भी कोई दुःख होता तो,
दूजे से कहते थे अक्सर...
आज कोई जो भाव नहीं हे,
निकल रहे एक दूजे से बचकर....

फिर भी कुछ खंडित अवशेष हे ,
जो कहते अब भी ,हम हैं आपके....
पर जो भाव ख़त्म होने लग जाये,
टूट जाये रिश्ते झनाक से......

            शब्द एवं भाव संयोजक - आलोक वार्ष्णेय

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