Sunday 5 July 2015

कहानी :अनुभव

कहानी : अनुभव

वो अलीगढ के दिन थे मेरे .. दूसरा साल था शायद कॉलेज का ..मगर वो दिन कुछ खास था . उस दिन अलीगढ में हमारी यूनिवर्सिटी का मेडिकल एंट्रेंस होने वाला था , जिस कारन उस दिन अलीगढ जंक्सन पर बहुत भीड़ रहती थी और उस भीड़ में होती थी खुबसूरत लड़कियां ...

तो आम लड़कों कि तरह हम भी उस खूबसूरती का दीदार करने उस रात स्टेशन गए थे ...मैं और मेरे तीन दोस्त (नाम लिख सकता हु मगर जरुरी नहीं समझता)..स्टेशन पर काफी देर टहलने और आँखों से खूबसूरती को निहार  लेने के बाद हम कमरे कि तरफ लौटने लगे थे ...और लौटते हुए वही स्टेशन के नुक्कड़ पर हलवाई  वाला दूध पिने के लिए रुके ...अभी रुके ही थे कि एक बुजुर्ग व्यक्ति हमारे पास आया और हमसे उसने पांच रुपये मांगे ताकि वह भी दूध पी सके ....जब हमने पूछा तो उसने बताया कि वह जौनपुर से आया था और यहाँ किसी ने उसके पैसे मार लिए हे जिस कारन वह सुबह से ऐसे ही घूम रहा हे और उसने कुछ खाया भी नही हे ....मेरे एक दोस्त ने उसे न सिर्फ दूध के पैसे दिए बल्कि हम सबसे कहा कि क्यूँ न इसे जौनपुर कि टिकेट  दिला दे ताकि ये घर जा  सके ...हम सबको ही ये विचार बहुत सही लगा था ...

खैर ये सोच कर हमने उसे लिंक एक्प्रेस का टिकेट दिला दिया था और उनसे कहा कि जब ट्रेन आये तो उसमे चढ़ जाना ...मगर एक नयी समस्या सामने आ गयी क्यूंकि वो बुजुर्ग पढना लिखना नहीं जानते थे और ऐसे में डर था कि वह कहीं गलत ट्रेन में न चढ़ जाएँ ...तब हम सबने सोचा कि क्यूंकि ट्रेन में अभी टाइम था तो क्यूँ न इन्हें कमरे पर ही ले चलते हे और जब ट्रेन का टाइम होगा तो खुद ही इन्हें बिठा भी देंगे ...

उस दिन उनकी मदद करने का अहसास हम चारों  को मन ही मन बहुत प्रसन्नता दे रहा था और इसी सोच में मेरे एक दोस्त ने कमरे पर आने के बाद अपना खाना तक उनको दे दिया ताकि वह रात के लम्बे सफ़र में भूखे न रहे ...आज हम चारों बहुत भावुक हुए जा रहे थे ...खैर तीन घंटे बाद रात के एक बजे ट्रेन का टाइम हो गया था और उन्हें स्टेशन छोड़ने के लिए मेरे दो दोस्त गए ...मैं आराम से आज तसल्ली से सो गया था ...एक भाव था कि कुछ अच्छा किया हे ...एक दिली तसल्ली थी ...

अभी आधा घंटा ही हुआ था कि मेरे दोस्त ने मुझे झंझोड़ के उठाया ..."अबे साले बाबा ठग था " ...ये सुनते ही मैं सन्न रहा गया था ...उसने बताया कि जब वो उसे छोड़ने गए तो ट्रेन और लेट हो गयी थी जिस कारन उन्होंने उसे वही एक पर्ची पर ट्रेन का नाम और प्लेटफार्म न. देकर छोड़ दिया था ...वो दोनों  वापिस आ ही रहे थे कि एक बेहद सुन्दर लड़की के कारन वो थोडा सा रुक गए थे ...तभी उन्होंने देखा कि वह बाबा टिकेट वापिसी काउंटर से टिकेट वापिस करके पैसे ले रहा था ....ये देखना था कि उन्होंने उसे पकड़ लिया ...वह घबरा कर उनके पैर पड़  गया ...उन्होंने पैसे वापिस छीन के उसे छोड़ तो दिया था  मगर उस घटना के साथ ही छुट गया था हम चारो का मदद करने का विश्वास..

इस घटना में हम चारो बेब्कुफ़ तो कहे जा सकते हे मगर सच में वह बेबकूफी हमारी इंसानियत से उपजी थी जिसको चकनाचूर करने में उस बूढ़े ने जरा भी हमदर्दी न दिखाई ...खैर ये एक कडुवा मगर सिखाने वाला अनुभव था हमारा...

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