Thursday 2 July 2015

एक बेचलर की कथा : भाग 4

एक बैचलर की कथा : भाग ४

डिस्क्लेमर :- यह भाग बैचलर जीवन के अभिन्न हिस्से से सम्बंधित हे , अतः व्यंग्य से ज्यादा यदि श्रद्धा का भाव प्रदर्शित हो तो लेखक वाकई जिम्मेदार माना जाये |

बड़ी ही उतपाती परन्तु विशेष सहयोगी प्रजाति एक बैचलर के जीवन से जोंक की तरह चिपकी रहती हे | नहीं समझे क्या , तब जरा अपना मैरिटल स्टेटस चैक जरूर करे क्यूंकि या तो आप पीड़ित शादीशुदा व्यक्ति हे या फिर बैचलर की खाल में वान्ना बी (WANNA BE )शादीशुदा | उम्मीद हे कि विशुद्धः बैचलर समझ गया हे कि मैं मित्र समूह कि बात कर रहा हू| एक बैचलर का अपने मित्रो के बिना जीवन यापन मुश्किल ही नहीं नामुमकिन ही हे | पैसे उधारी या किताब उधारी , पार्टी मानना या लड़की पटवाना , किसी कि पिटाई या दुसरो कि बुराई , हर तरह के काम में जो आये काम , दोस्त होता हे उसी का नाम ( घटिया पद्यात्मक गद्या - तुकबंदी वाला , लेखक कि क्षमता के अनुसार ) |

आज के कलियुगी समाज के होशियार रिश्तेदार जब आपका फ़ोन आता देख ही, आपकी आर्थिक सहायता की मांग से पूर्व ही, अपने दुखड़े सुनाने शुरू कर देते हे तब ये मित्र स्वयं वास्तविक समस्याओं में जीते हुए भी ( याद रहे वह महीने के अंतिम सप्ताह में सिगरेट पीना बंद कर चुका हे ) अपने कमरे में बिखरे कपड़ो में से दस दस के नोट इकठे करके आपकी सहायता की जिजीविषा दिखाता हे , वाकई ये दृश्य स्वयं सुदामा रूपी मित्र द्वारा सुदामा की ही सहायता जैसा होता हे |

वहीँ दूसरी और अगर बात युद्ध क्षेत्र में सहायता की हो तब यही मित्र महाभारत के कर्ण से भी बड़ा कर्ण बन जाता हे और बिना ये सोचे समझे की हम धर्म की लड़ाई लड़ रहे हे या अधर्म की , ये सदा हमारा ही साथ देता हे |वाकई द्वापर के कर्ण से बड़े कर्णो ने तो कलियुग में जन्म लिया हे ( जय कल्कि महाराज ) | वहीँ कई ऐसे परम दीन काया (WEAK BODY ) वाले मित्र जो सामान्यतः कृष्ण रूपी नीतिवाचक (प्लनिंग समझाने वाले ) की भूमिका में रहते हे , समय आने पर शस्त्र भी उठा लेते हे ( हालाँकि तब ये निर्ममता से पिट के ही आते हे और जिस मित्र के लिए गए थे उसे समस्त जहाँ की गालिया भी देते हे , मगर इससे उनके मित्र धर्म पर संदेह नहीं किया जा सकता ) |

लड़कियों के मामले में प्रारंभिक प्रतितवन्दिता के सहयोग में बदलने का ज्वलंत उदाहरण भी ये मित्र ही हैं  | प्रारम्भ में समस्त पैतरें अपना लेने पे जब वह जान जाता हे की लड़की उसके मित्र को ही भाव देती हे तब ये तुरंत उसको भाभी के रूप में स्वीकार कर लेता हे | और तब सेटिंग से लेकर मीटिंग तक हर जगह ये मित्र ही काम आते हे | यहाँ तक कि यदि आपका ब्रेकअप हुआ तो ये मित्र ही आपकी पूर्व प्रेमिका के भावनात्मक सहारा बनते हे ( कई बार  परिणामस्वरूप आपकी पूर्व प्रेमिका आपकी ही भाभी बन जाती हे )

वाकई इस कलियुगी जीवन में जहाँ हर रिश्ता कमजोर पड़ा हे वहीँ दोस्ती मित्रता आज भी सतयुगी पायदान पर हे ( ये पंक्ति लेखक ने जानबूझ के डाली हे ताकि उसके दार्शनिक ज्ञान कि अभिव्यक्ति हो सके ) 

2 comments:

  1. सही कहा....दोस्ती का रिश्ता सबसे आत्मिक और गहरा होता है यही वो रिश्ता है जहाँ से जीवन का सारा स्ट्रेस मैंनेज़मेंट होता है

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  2. सही कहा....दोस्ती का रिश्ता सबसे आत्मिक और गहरा होता है यही वो रिश्ता है जहाँ से जीवन का सारा स्ट्रेस मैंनेज़मेंट होता है

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