Sunday 12 July 2015

कहानी : समानता

मैं तुम पर अपनी इच्छाये नहीं थोपना चाहता मगर मैं ये भी नहीं चाहता कि तुम अब उस जगह काम करो "

"मगर मैं वहां काम करके बहुत खुश हूँ और वहां मेरी तरक्की के अवसर भी बहुत हे "

"वो ठीक हे मगर अब देखो तुम ये कॉर्पोरेट की जॉब छोड़ के किसी स्कूल में टीचर बन जाओ , उससे घर के लिए टाइम भी दे पाओगी "

"लेकिन टीचिंग ....."

"देखो मैं बस कह रहा हूँ ..."

"मगर मुझे मेरा काम बहुत पसंद हे ...."

"अरे काम तो सारे ही अच्छे होते हे , फिर औरतों के लिए तो टीचिंग बहुत ही अच्छा आप्शन हेना ..."

"होगा शायद ...मगर मुझे अपनी मार्केटिंग की जॉब में ही चेलेंज महसूस होता हे "

"यार क्या अब तुम मेरी इतनी भी नहीं मान सकती हो ..."

वो चुप थी अब ...सोच रही थी कि क्या इसे ही न थोपना कहते हे ....हाँ वो वाकई थोप नहीं रहा था बस घुमा फिरा के अपनी बात मनवाना चाहता था , या फिर इसे ही तो थोपना कहते हे ...

Wednesday 8 July 2015

कुछ हो तुम

दर्द हो सीने में
गर छुपाना आये तो कुछ हो तुम,
आशू हो आँखों में,
गर उन्हें पीना जानो तो कुछ हो तुम....
यू रोना जो रोओगे
तो साथ तक छोड़ देगा जहाँ
जो पीठ में हो खंजर
गर तब भी मुश्काओ तो कुछ हो तुम
सच बस इतना हे
सलाम जीने वालों को करते हे लोग
सांस न भी हो हलक में
गर तब भी हो बुदबुदाहट तो कुछ हो तुम ...

Sunday 5 July 2015

कहानी :अनुभव

कहानी : अनुभव

वो अलीगढ के दिन थे मेरे .. दूसरा साल था शायद कॉलेज का ..मगर वो दिन कुछ खास था . उस दिन अलीगढ में हमारी यूनिवर्सिटी का मेडिकल एंट्रेंस होने वाला था , जिस कारन उस दिन अलीगढ जंक्सन पर बहुत भीड़ रहती थी और उस भीड़ में होती थी खुबसूरत लड़कियां ...

तो आम लड़कों कि तरह हम भी उस खूबसूरती का दीदार करने उस रात स्टेशन गए थे ...मैं और मेरे तीन दोस्त (नाम लिख सकता हु मगर जरुरी नहीं समझता)..स्टेशन पर काफी देर टहलने और आँखों से खूबसूरती को निहार  लेने के बाद हम कमरे कि तरफ लौटने लगे थे ...और लौटते हुए वही स्टेशन के नुक्कड़ पर हलवाई  वाला दूध पिने के लिए रुके ...अभी रुके ही थे कि एक बुजुर्ग व्यक्ति हमारे पास आया और हमसे उसने पांच रुपये मांगे ताकि वह भी दूध पी सके ....जब हमने पूछा तो उसने बताया कि वह जौनपुर से आया था और यहाँ किसी ने उसके पैसे मार लिए हे जिस कारन वह सुबह से ऐसे ही घूम रहा हे और उसने कुछ खाया भी नही हे ....मेरे एक दोस्त ने उसे न सिर्फ दूध के पैसे दिए बल्कि हम सबसे कहा कि क्यूँ न इसे जौनपुर कि टिकेट  दिला दे ताकि ये घर जा  सके ...हम सबको ही ये विचार बहुत सही लगा था ...

खैर ये सोच कर हमने उसे लिंक एक्प्रेस का टिकेट दिला दिया था और उनसे कहा कि जब ट्रेन आये तो उसमे चढ़ जाना ...मगर एक नयी समस्या सामने आ गयी क्यूंकि वो बुजुर्ग पढना लिखना नहीं जानते थे और ऐसे में डर था कि वह कहीं गलत ट्रेन में न चढ़ जाएँ ...तब हम सबने सोचा कि क्यूंकि ट्रेन में अभी टाइम था तो क्यूँ न इन्हें कमरे पर ही ले चलते हे और जब ट्रेन का टाइम होगा तो खुद ही इन्हें बिठा भी देंगे ...

उस दिन उनकी मदद करने का अहसास हम चारों  को मन ही मन बहुत प्रसन्नता दे रहा था और इसी सोच में मेरे एक दोस्त ने कमरे पर आने के बाद अपना खाना तक उनको दे दिया ताकि वह रात के लम्बे सफ़र में भूखे न रहे ...आज हम चारों बहुत भावुक हुए जा रहे थे ...खैर तीन घंटे बाद रात के एक बजे ट्रेन का टाइम हो गया था और उन्हें स्टेशन छोड़ने के लिए मेरे दो दोस्त गए ...मैं आराम से आज तसल्ली से सो गया था ...एक भाव था कि कुछ अच्छा किया हे ...एक दिली तसल्ली थी ...

अभी आधा घंटा ही हुआ था कि मेरे दोस्त ने मुझे झंझोड़ के उठाया ..."अबे साले बाबा ठग था " ...ये सुनते ही मैं सन्न रहा गया था ...उसने बताया कि जब वो उसे छोड़ने गए तो ट्रेन और लेट हो गयी थी जिस कारन उन्होंने उसे वही एक पर्ची पर ट्रेन का नाम और प्लेटफार्म न. देकर छोड़ दिया था ...वो दोनों  वापिस आ ही रहे थे कि एक बेहद सुन्दर लड़की के कारन वो थोडा सा रुक गए थे ...तभी उन्होंने देखा कि वह बाबा टिकेट वापिसी काउंटर से टिकेट वापिस करके पैसे ले रहा था ....ये देखना था कि उन्होंने उसे पकड़ लिया ...वह घबरा कर उनके पैर पड़  गया ...उन्होंने पैसे वापिस छीन के उसे छोड़ तो दिया था  मगर उस घटना के साथ ही छुट गया था हम चारो का मदद करने का विश्वास..

इस घटना में हम चारो बेब्कुफ़ तो कहे जा सकते हे मगर सच में वह बेबकूफी हमारी इंसानियत से उपजी थी जिसको चकनाचूर करने में उस बूढ़े ने जरा भी हमदर्दी न दिखाई ...खैर ये एक कडुवा मगर सिखाने वाला अनुभव था हमारा...

Thursday 2 July 2015

एक बेचलर की कथा : भाग 4

एक बैचलर की कथा : भाग ४

डिस्क्लेमर :- यह भाग बैचलर जीवन के अभिन्न हिस्से से सम्बंधित हे , अतः व्यंग्य से ज्यादा यदि श्रद्धा का भाव प्रदर्शित हो तो लेखक वाकई जिम्मेदार माना जाये |

बड़ी ही उतपाती परन्तु विशेष सहयोगी प्रजाति एक बैचलर के जीवन से जोंक की तरह चिपकी रहती हे | नहीं समझे क्या , तब जरा अपना मैरिटल स्टेटस चैक जरूर करे क्यूंकि या तो आप पीड़ित शादीशुदा व्यक्ति हे या फिर बैचलर की खाल में वान्ना बी (WANNA BE )शादीशुदा | उम्मीद हे कि विशुद्धः बैचलर समझ गया हे कि मैं मित्र समूह कि बात कर रहा हू| एक बैचलर का अपने मित्रो के बिना जीवन यापन मुश्किल ही नहीं नामुमकिन ही हे | पैसे उधारी या किताब उधारी , पार्टी मानना या लड़की पटवाना , किसी कि पिटाई या दुसरो कि बुराई , हर तरह के काम में जो आये काम , दोस्त होता हे उसी का नाम ( घटिया पद्यात्मक गद्या - तुकबंदी वाला , लेखक कि क्षमता के अनुसार ) |

आज के कलियुगी समाज के होशियार रिश्तेदार जब आपका फ़ोन आता देख ही, आपकी आर्थिक सहायता की मांग से पूर्व ही, अपने दुखड़े सुनाने शुरू कर देते हे तब ये मित्र स्वयं वास्तविक समस्याओं में जीते हुए भी ( याद रहे वह महीने के अंतिम सप्ताह में सिगरेट पीना बंद कर चुका हे ) अपने कमरे में बिखरे कपड़ो में से दस दस के नोट इकठे करके आपकी सहायता की जिजीविषा दिखाता हे , वाकई ये दृश्य स्वयं सुदामा रूपी मित्र द्वारा सुदामा की ही सहायता जैसा होता हे |

वहीँ दूसरी और अगर बात युद्ध क्षेत्र में सहायता की हो तब यही मित्र महाभारत के कर्ण से भी बड़ा कर्ण बन जाता हे और बिना ये सोचे समझे की हम धर्म की लड़ाई लड़ रहे हे या अधर्म की , ये सदा हमारा ही साथ देता हे |वाकई द्वापर के कर्ण से बड़े कर्णो ने तो कलियुग में जन्म लिया हे ( जय कल्कि महाराज ) | वहीँ कई ऐसे परम दीन काया (WEAK BODY ) वाले मित्र जो सामान्यतः कृष्ण रूपी नीतिवाचक (प्लनिंग समझाने वाले ) की भूमिका में रहते हे , समय आने पर शस्त्र भी उठा लेते हे ( हालाँकि तब ये निर्ममता से पिट के ही आते हे और जिस मित्र के लिए गए थे उसे समस्त जहाँ की गालिया भी देते हे , मगर इससे उनके मित्र धर्म पर संदेह नहीं किया जा सकता ) |

लड़कियों के मामले में प्रारंभिक प्रतितवन्दिता के सहयोग में बदलने का ज्वलंत उदाहरण भी ये मित्र ही हैं  | प्रारम्भ में समस्त पैतरें अपना लेने पे जब वह जान जाता हे की लड़की उसके मित्र को ही भाव देती हे तब ये तुरंत उसको भाभी के रूप में स्वीकार कर लेता हे | और तब सेटिंग से लेकर मीटिंग तक हर जगह ये मित्र ही काम आते हे | यहाँ तक कि यदि आपका ब्रेकअप हुआ तो ये मित्र ही आपकी पूर्व प्रेमिका के भावनात्मक सहारा बनते हे ( कई बार  परिणामस्वरूप आपकी पूर्व प्रेमिका आपकी ही भाभी बन जाती हे )

वाकई इस कलियुगी जीवन में जहाँ हर रिश्ता कमजोर पड़ा हे वहीँ दोस्ती मित्रता आज भी सतयुगी पायदान पर हे ( ये पंक्ति लेखक ने जानबूझ के डाली हे ताकि उसके दार्शनिक ज्ञान कि अभिव्यक्ति हो सके )