कटाक्ष :कालिदास तुम्हारी हत्या जरुरी थी
आज के समय में जब हर जगह सहिष्णुता और असहिष्णुता की एक बहस सी छिड़ी हे तब मुझे लगता हे कि इसका जबाब इतिहास में ढूँढना बहुत जरुरी हे .. सबसे बड़ा सवाल तो ये हे कि आज के लेखकों और बुद्धिजीवियों में इतनी हिम्मत ही कहाँ से आ गयी हे कि वो बिना सोचे समझे हमारी संस्कृति और धर्म का उपहास उड़ा देते हे ...कलबुर्गी जैसे नास्तिकों और पेरूमल मुरगन जैसे लोगों को कम से कम इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि ये भारत हे जहाँ संस्कृति पर सवाल नहीं झेला जायेगा ...मगर तब भी इतनी हिमाकत ? आखिर क्यूँ और कैसे ?
बहुत सोचा तब एक ही जबाब आया कि शायद प्राचीन लोग हद से ज्यादा सहनशील थे , कुछ ज्यादा ही ...वरना कालिदास आखिर जिंदा कैसे रह गए ? जिस कालिदास ने 'कुमार संभव' जैसा बेहद अश्लील साहित्य लिखा और वह भी भगवान् शिव को विषय बनाते हुए ,उस कालिदास को उस समय के लोगो ने न तो जान से मारा और उल्टा उसे महानता के शिखर पर बैठा दिया ...हालाँकि सुना हे इसके लिए उनकी तब भी आलोचना कि गयी थी मगर तब भी मात्र आलोचना से क्या होता ...उल्टा उन्हें उनकी अन्य रचनाओ के कारन महान लेखक साबित कर दिया गया ...कमाल तो ये हे कि ये बेहद अश्लील साहित्य कई यूनिवर्सिटी में पोस्ट ग्रेजुएशन में पढाया भी जाता हे ...मेरे हिसाब से आज के समय में इन नए लेखकों को देश में असहिष्णुता बढाने से रोकने के लिए कालिदास तुम्हरी हत्या जरुरी थी ...
उस समय कि पीढ़ी की इस सहनशीलता ने आज के दौर में सहनशीलता के रक्षकों के सामने बड़े ही असहनशील प्रश्न खड़े कर दिए हे ...बे बेचारे जितना इन लेखकों को रोक रहे हे उतना ही कालिदास जैसे लेखको की घोषित महानता इनको प्रेरित करती हे कि वह हमारी पवित्र संस्कृति पर सवाल उठाये ...काश कि तुम्हे तब मार दिया होता तो ये सब आज इतने मुखर न हो पाते ..काश कि तुम आज ये सब लिखते तो तुम कालिदास नहीं कलबुर्गी बना दिए जाते ...सच में कालिदास तुम्हारी हत्या जरुरी थी ...
आज के समय में जब हर जगह सहिष्णुता और असहिष्णुता की एक बहस सी छिड़ी हे तब मुझे लगता हे कि इसका जबाब इतिहास में ढूँढना बहुत जरुरी हे .. सबसे बड़ा सवाल तो ये हे कि आज के लेखकों और बुद्धिजीवियों में इतनी हिम्मत ही कहाँ से आ गयी हे कि वो बिना सोचे समझे हमारी संस्कृति और धर्म का उपहास उड़ा देते हे ...कलबुर्गी जैसे नास्तिकों और पेरूमल मुरगन जैसे लोगों को कम से कम इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि ये भारत हे जहाँ संस्कृति पर सवाल नहीं झेला जायेगा ...मगर तब भी इतनी हिमाकत ? आखिर क्यूँ और कैसे ?
बहुत सोचा तब एक ही जबाब आया कि शायद प्राचीन लोग हद से ज्यादा सहनशील थे , कुछ ज्यादा ही ...वरना कालिदास आखिर जिंदा कैसे रह गए ? जिस कालिदास ने 'कुमार संभव' जैसा बेहद अश्लील साहित्य लिखा और वह भी भगवान् शिव को विषय बनाते हुए ,उस कालिदास को उस समय के लोगो ने न तो जान से मारा और उल्टा उसे महानता के शिखर पर बैठा दिया ...हालाँकि सुना हे इसके लिए उनकी तब भी आलोचना कि गयी थी मगर तब भी मात्र आलोचना से क्या होता ...उल्टा उन्हें उनकी अन्य रचनाओ के कारन महान लेखक साबित कर दिया गया ...कमाल तो ये हे कि ये बेहद अश्लील साहित्य कई यूनिवर्सिटी में पोस्ट ग्रेजुएशन में पढाया भी जाता हे ...मेरे हिसाब से आज के समय में इन नए लेखकों को देश में असहिष्णुता बढाने से रोकने के लिए कालिदास तुम्हरी हत्या जरुरी थी ...
उस समय कि पीढ़ी की इस सहनशीलता ने आज के दौर में सहनशीलता के रक्षकों के सामने बड़े ही असहनशील प्रश्न खड़े कर दिए हे ...बे बेचारे जितना इन लेखकों को रोक रहे हे उतना ही कालिदास जैसे लेखको की घोषित महानता इनको प्रेरित करती हे कि वह हमारी पवित्र संस्कृति पर सवाल उठाये ...काश कि तुम्हे तब मार दिया होता तो ये सब आज इतने मुखर न हो पाते ..काश कि तुम आज ये सब लिखते तो तुम कालिदास नहीं कलबुर्गी बना दिए जाते ...सच में कालिदास तुम्हारी हत्या जरुरी थी ...