Wednesday 24 June 2015

एक बेचलर की कथा : भाग 2

एक बैचलर की कथा : भाग 2

डिस्क्लेमर : यह व्यंग्य लगभग सभी बैचलर की जिंदगियों से प्रेरित हे, अतः प्रत्येक बैचलर इससे स्वयं को आहत ही माने ....

बैचलर की जिंदगी में दूसरा महत्वपूर्ण हिस्सा उनकी किचन का एक शादीशुदा की किचन से पूरी तरह भिन्न होना हे । शादीशुदाओ की किचन के विपरीत बैचलर की किचन कई बार चलायमान हो जाती हे । सुविधानुसार उसे कहीं भी उठाया और रखा जा सकता हे । मोड्यूलर किचन के जमाने में मोबाइल किचन की नवीन खोज बचेलोरों के अथक शोध का  ही परिणाम हे ।

इस किचन में जरुरत से ज्यादा एक भी सामान नहीं पाया जाता जैसे कुछ इक  थाली , 2 से 4 चम्मच एवं कुछ कप और अन्य छोटे बर्तन । भारतीय अर्थव्यवस्था के कम संसाधनों में बेहतर प्रबंधन के फॉर्मूले का ज्वलंत उदाहरण हे ये किचन । बर्तनों की भूमिका यहाँ स्थायी नहीं वल्कि आगंतुकों के हिसाब से बदलती रहती हे । कढ़ाही कई बार थाल के समान खाना खाने में प्रयोग हो जाती हे तो कई बार चमचे का प्रयोग चम्मच के तौर पर भी किया जाता हे। एक पोस्ट पर बैठे व्यक्ति से कई पोस्टों का काम कराने का कॉर्पोरेट प्रबंधन का सूत्र शायद इन्ही किचनो से प्रेरित हे ।

यहाँ पर मिठाई के डिब्बे , कोल्डड्रिंक की बोतलों का जैसा उत्तम प्रयोग देखने को मिलता हे यदि उसे अपना लिया जाए तो स्वच्छ भारत अभियान एक माह में ही पूरा हो जाये (अतिशयोक्ति अलंकार का उदहारण :ख़ास हिंदी के छात्रों हेतु ) । पुराने आधे टूटे कपों का संकलन आपातकालीन परिस्तिथि में चाय परोसने हेतु भी रखा जाता हे (डिजास्टर मैनेजमेंट )।

इस किचन के खाने की शान हे आलू ,चावल एवं दाल । जब जब भी बैचलर अपने महत्वपूर्ण आलस नामक गुण के कारन सब्जी नहीं ला पता तब तब वह आलू के परांठे , खिचड़ी या दाल बनाके काम चलता हे । और इस पर दम्भ ये कि वास्तव में वो ऐसा ज्यादा तड़क भड़क के खाने में विशवास न रखने के कारन करता हे और कई बार तो दोस्तों के सामने अपनी इस आदत को गांधीजी के दर्शन से जोड़कर कह देता हे क़ि वह जीने की लिए खाता हे नाकि खाने के लिए जीता हे ।
इस प्रकार एक बैचलर की किचन एक शादीशुदा की अतिव्यवस्थित किन्तु बोरिंग किचन को चिढ़ाती हुयी जीवन के बैचलर दर्शन को व्यक्त करती हे ।   (क्रमशः)

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