Sunday 20 November 2016

आधुनिक कृष्णा अर्जुन संवाद : 3

आधुनिक कृष्णा अर्जुन संवाद : 3
(कृष्णा और अर्जुन सुबह बाग में टहल रहे थे)
अर्जुन : कृष्णा ! कल आपने एक बात कही थी क़ि शादी के बाद अक्सर प्रेम में वो रंगत नहीं रहती , इसका क्या तात्पर्य है प्रभु ?
कृष्णा : ( गंभीर मुद्रा में ) हम्म ! वास्तव में ये बहुत हद तक सही प्रतीत होता है, अर्जुन । अब देखो न , प्रेम तो मैंने रुक्मिणी से भी किया ही है ,मगर तब भी तुम सब मेरे उस प्रेम को उतना कहाँ मानते हो ।
अर्जुन : हो सकता हे माधव , किन्तु इससे मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं मिला ?
कृष्णा : तो सुनो पार्थ , प्रेम स्वाभाविक है जबकि विवाह अस्वभाविक , प्रेम आत्मिक है जबकि विवाह सामाजिक ।
अर्जुन : पूरी तरह स्पष्ट कीजिये प्रभु , अभी भी बहुत समझ नहीं पाया हूँ ।
कृष्णा : ( मुस्कराहट के साथ ) अर्जुन , प्रेम का चुनाव हम स्वयं करते है किन्तु प्रेम में भी विवाह हम सिर्फ इसलिए करते है क्योंकि वो समाज की थोपी हुयी व्यवस्था है । प्रेम आत्मा से किया जाता है जबकि विवाह तो मात्र सामजिक जरुरत है न पार्थ ।
अर्जुन : किन्तु इससे प्रेम में कमी कैसे आ जायेगी प्रभु ?
कृष्णा : हमेशा तो नहीं अर्जुन , किन्तु कई विवाह समाज की तमाम जिम्मेवारियों और कर्तव्यों के पीछे खो से जाते है और उनमें वह प्रेम नहीं रह जाता जो विवाह से पहले हुआ करता था ।
(कृष्णा विचारमग्न से हो गए थे )
एक बात कहूँ अर्जुन , हर प्रेम को विवाह तक लाना बिलकुल भी आवश्यक नहीं , कुछ प्रेम सिर्फ प्रेम तक ही रहे तो वो ताउम्र प्रेम की सुगंध से महकते रहते है ।
अर्जुन : मैं तो थोडा और उलझ गया आपके इस अंतिम वाक्य से ।
कृष्णा : जानता था कि उलझ जाओगे , क्योंकि ये बात इतनी आसान नहीं है समझना । ज़िन्दगी कई बार ये बात खुद समझाती है । खैर चलो बाकी बात बाद में करेंगे , सुभद्रा ने आज नाश्ते में क्या बनाया है ?
अर्जुन : ये तो जाके ही मालूम होगा , वैसे मेरी तो भूख सी ही उड़ गयी है ।
(कृष्णा ने जोर से एक ठहाका लगाया )

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